राहत के वास्ते न रिफ़ाक़त के वास्ते
अब कोई मुझ को चाहे तो चाहत के वास्ते
ये इख़्तिलाफ़-ए-फ़िक्र बहुत काम आएगा
इस को बचा के रख किसी साअत के वास्ते
दोनों को इस जहान में सच की तलाश थी
इतना बहुत था हम में रिफ़ाक़त के वास्ते
मैं ख़्वाहिश-ए-क़याम से आगे निकल गया
अब मुझ को मत पुकार इक़ामत के वास्ते
मंज़िल मिरी सफ़र है मिरा ज़ाद-ए-राह भी
मैं चल रहा हूँ आज मसाफ़त के वास्ते
वो साँप था और उस को सपेरे से प्यार था
इतना बहुत था उस की हलाकत के वास्ते
ग़ज़ल
राहत के वास्ते न रिफ़ाक़त के वास्ते
सय्यद अनवार अहमद