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राह से मुझ को हटा कर ले गया | शाही शायरी
rah se mujhko haTa kar le gaya

ग़ज़ल

राह से मुझ को हटा कर ले गया

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

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राह से मुझ को हटा कर ले गया
जान का ख़तरा बता कर ले गया

कट मिरा इक शख़्स अपनी आन पर
और अपना सर उठा कर ले गया

एक दिन दरिया मकानों में घुसा
और दीवारें उठा कर ले गया

हाथ सूरज के न जब आई नदी
आग पानी में लगा कर ले गया

उड़ती चिंगारी को जुगनू जान कर
तिफ़्ल दामन में छुपा कर ले गया

मुद्दतों काँटे बिछाए राह में
एक दिन आँखें बिछा कर ले गया