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राह-रौ चुप हैं राहबर ख़ामोश | शाही शायरी
rah-rau chup hain rahbar KHamosh

ग़ज़ल

राह-रौ चुप हैं राहबर ख़ामोश

वाहिद प्रेमी

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राह-रौ चुप हैं राहबर ख़ामोश
कैसे गुज़रेगा ये सफ़र ख़ामोश

कोई हंगामा-ए-हयात नहीं
रात ख़ामोश है सहर ख़ामोश

ज़िंदगी को कहाँ तलाश करें
कूचा कूचा नगर नगर ख़ामोश

बज़्म में वो ख़मोश क्या होंगे
हो सके जो न दार पर ख़ामोश