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राह में मेरी अगर आए तो मर जाएँगे आप | शाही शायरी
rah mein meri agar aae to mar jaenge aap

ग़ज़ल

राह में मेरी अगर आए तो मर जाएँगे आप

इरतिज़ा निशात

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राह में मेरी अगर आए तो मर जाएँगे आप
क्या मुझे यूँ ही नज़र-अंदाज़ कर जाएँगे आप

एक पल आसूदगी का एक लम्हा इश्क़ का
मुझ से हम-आग़ोश होते ही निखर जाएँगे आप

सत्ह पर मुझ को छलकने की न दावत दीजिए
एक क़तरा भी अगर टपका तो भर जाएँगे आप

इक अदा मासूमियत और एक तोहमत मासियत
कब तलक बचते रहेंगे हम किधर जाएँगे आप

बद-शुगूनी की अलामत पेश-ख़ेमा मौत का
देखिए हम जान दे देंगे अगर जाएँगे आप

क़ब्र जैसी ना-पसंदीदा जगह भी 'इर्तिज़ा'
दिल कभी हरगिज़ न चाहेगा मगर जाएँगे आप