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राह-ए-उल्फ़त में मक़ामात पुराने आए | शाही शायरी
rah-e-ulfat mein maqamat purane aae

ग़ज़ल

राह-ए-उल्फ़त में मक़ामात पुराने आए

गोविन्द गुलशन

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राह-ए-उल्फ़त में मक़ामात पुराने आए
तुम न आए तो मुझे याद फ़साने आए

वक़्त-ए-रुख़्सत न दिया साथ ज़बाँ ने लेकिन
अश्क बन कर मिरी आँखों में तराने आए

रात के वक़्त हर इक सम्त थे नक़ली सूरज
साए थे अस्ल जो किरदार निभाने आए

वक़्त आता ही नहीं लौट के ये बात है झूट
मेरी आँखों में कई गुज़रे ज़माने आए

ज़िंदगी हार गई हार का मातम न किया
ऐसे लम्हात तो कितने ही न जाने आए

घर मिरा जल गया लेकिन ये तसल्ली है मुझे
आग जो दे के गए आग बुझाने आए