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राह-ए-इश्क़ में इतने तो बेदार थे हम | शाही शायरी
rah-e-ishq mein itne to bedar the hum

ग़ज़ल

राह-ए-इश्क़ में इतने तो बेदार थे हम

कुलदीप कुमार

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राह-ए-इश्क़ में इतने तो बेदार थे हम
हिज्र आएगा पहले ही तय्यार थे हम

शहर बसे थे मीलों तक उस की जानिब
एक मुसलसल जंगल था जिस पार थे हम

हम पे रंग-ओ-रोग़न क्या तस्वीरें क्या
घर के पिछले हिस्से की दीवार थे हम

शाम से कोई भीड़ उतरती जाती थी
इक कमरे के अंदर भी बाज़ार थे हम

एक कहानी ख़ुद ही हम से आ लिपटी
क्या मा'लूम कि कब इस के किरदार थे

आज हमारे मातम में ये चर्चा था
इक मुद्दत से तन्हा थे बीमार थे हम

क्या अब इश्क़ में वैसी वहशत मुमकिन है
जैसे पागल इश्क़ में पहली बार थे हम