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राह भटका हुआ इंसान नज़र आता है | शाही शायरी
rah bhaTka hua insan nazar aata hai

ग़ज़ल

राह भटका हुआ इंसान नज़र आता है

अभिषेक कुमार अम्बर

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राह भटका हुआ इंसान नज़र आता है
तेरी आँखों में तो तूफ़ान नज़र आता है

पास से देखो तो मा'लूम पड़ेगा तुम को
काम बस दूर से आसान नज़र आता है

इस को मा'लूम नहीं अपने वतन की सरहद
ये परिंदा अभी नादान नज़र आता है

बस वही भूमी पे इंसान है कहने लाएक़
जिस को हर शख़्स में भगवान नज़र आता है

आई जिस रोज़ से बेटी पे जवानी उस की
बाप हर वक़्त परेशान नज़र आता है

जब से तुम छोड़ गए मुझ को अकेला 'अम्बर'
शहर सारा मुझे वीरान नज़र आता है