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क़ुर्ब-ए-मंज़िल टूट जाए हौसला अच्छा नहीं | शाही शायरी
qurb-e-manzil TuT jae hausla achchha nahin

ग़ज़ल

क़ुर्ब-ए-मंज़िल टूट जाए हौसला अच्छा नहीं

वफ़ा सिद्दीक़ी

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क़ुर्ब-ए-मंज़िल टूट जाए हौसला अच्छा नहीं
फ़स्ल को पकने से पहले काटना अच्छा नहीं

डूबने वाले भी उस कश्ती के कम शातिर न थे
आदतन कहते रहे थे ना-ख़ुदा अच्छा नहीं

ग़ैर को पहले परखते मुझ से फिर मुँह मोड़ते
जल्द-बाज़ी में तुम्हारा फ़ैसला अच्छा नहीं

मैं तो बाज़ी हार कर बे-फ़िक्र हो कर चल दिया
जीतने वालों को चसका लग गया अच्छा नहीं

ख़िज़्र की मीरास का वो आज दा'वेदार है
बे-चले कहता है जो कि रास्ता अच्छा नहीं

रास्ता चलते रहो वर्ना 'वफ़ा' खो जाओगे
अच्छे-ख़ासे सिलसिले को तोड़ना अच्छा नहीं