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क़ुफ़्ल-ए-सद-ख़ाना-ए-दिल आया जो तू टूट गए | शाही शायरी
qufl-e-sad-KHana-e-dil aaya jo tu TuT gae

ग़ज़ल

क़ुफ़्ल-ए-सद-ख़ाना-ए-दिल आया जो तू टूट गए

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

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क़ुफ़्ल-ए-सद-ख़ाना-ए-दिल आया जो तू टूट गए
जो तिलिस्मात न टूटे थे कभू टूट गए

सैकड़ों कासा सर-ए-दहर में मानिंद-ए-हबाब
कभू ऐ चर्ख़ बने तुझ से कभू टूट गए

टाँके क्या जैब के फिर बाद-ए-रफ़ू टूट गए
हो के नाख़ुन कभी सीने में फ़रो टूट गए

तू जो कहता है कि दे ग़ैर को भी साग़र-ए-मय
हाथ क्या उस के हैं ऐ आईना-रू टूट गए

क्यूँके बिन कश्ती-ए-मय कीजिए सैर-ए-दरिया
मय-कशो ज़ेर-ए-बग़ल अब तो कदू टूट गए

देख कर सुरमे की तहरीर तिरी आँखों में
काफ़िरों के भी हैं ज़ुन्नार गुलू टूट गए

सदमा-ए-ग़म से तिरे जूँ गुल-बाज़ी अफ़्सोस
सारे आ'ज़ा मिरे ऐ अरबदा-जू टूट गए

संग-ए-ग़ैरत से कई आईने ऐ अहद शिकन
देख कर साफ़ तिरा रू-ए-नकू टूट गए

तीर दिल से वो निकलते हैं कोई जज़्बा-ए-शौक़
निकले सूफ़ार जो सीने से गुलू टूट गए

दिल शिकस्ता ही रहा बा'द-ए-फ़ना भी मैं तो
कि मिरी ख़ाक से बनते ही सुबू टूट गए

शिद्दत-ए-गिर्या से था रात ये अश्कों का हुजूम
चश्म-ए-तर फिर मिरे मिज़्गाँ के हैं मू टूट गए

गुलशन-ए-इश्क़ में अल्लाह है क्या कसरत-ए-बार
बिन हवा कितने ही नख़्ल-ए-लब-ए-जू टूट गए

कह ब-तब्दील-ए-क़वाफ़ी ग़ज़ल इक और भी 'ज़ौक़'
देखें बिठलाए है किस तरह से तू टूट गए