EN اردو
क़याम उम्र-ए-रवाँ का मुसाफ़िराना है | शाही शायरी
qayam umr-e-rawan ka musafirana hai

ग़ज़ल

क़याम उम्र-ए-रवाँ का मुसाफ़िराना है

महावीर परशाद अंजुम

;

क़याम उम्र-ए-रवाँ का मुसाफ़िराना है
जहाँ में रहते हैं जब तक कि आब-ओ-दाना है

अबस ग़ुरूर है तौफ़ीक़-ए-ख़ैर पर ज़ाहिद
ये उस की रहमत-ओ-बख़्शिश का इक बहाना है

मुझे रियाज़त-ओ-ताअ'त पर ए'तिमाद नहीं
सर-ए-नियाज़ मिरा तेरा आस्ताना है

फ़ना ही का है बक़ा नाम दूसरा 'अंजुम'
नफ़स की आमद-ओ-शुद मौत का तराना है