क़तरे को तुम दरिया कर दो
मुझ को अपने जैसा कर दो
दिल में अपना प्यार जगा कर
काश मोहब्बत वाला कर दो
मुझ को अपना कह कर सब से
मेरे पीछे दुनिया कर दो
ऐसी आँधी प्यार की भेजो
दिल का गुलशन सहरा कर दो
तेरे सिवा मैं कुछ भी न देखूँ
आँख पे ऐसा पर्दा कर दो
धड़कन आहें सब हैं सूनी
साँसों को भी तन्हा कर दो
महफ़िल महफ़िल देख चुके हैं
जान में आ कर जल्वा कर दो
रुकने लगी है दिल की धड़कन
जी चाहे तो अच्छा कर दो
अपने 'ज़िया' के साथ रहो तुम
मर जाए तो ज़िंदा कर दो

ग़ज़ल
क़तरे को तुम दरिया कर दो
सय्यद ज़िया अल्वी