क़त्ल उश्शाक़ किया करते हैं
बुत कहाँ ख़ौफ़-ए-ख़ुदा करते हैं
सर मिरा तन से जुदा करते हैं
दर्द की आप दवा करते हैं
आतिश-ए-ग़म ने मगर फूँक दिया
दिल से शोले जो उठा करते हैं
जामा-ए-सुर्ख़ तिरा देख के गुल
पैरहन अपना क़बा करते हैं
ख़ून रोते हैं चमन में बुलबुल
हम गुलों से जो हँसा करते हैं
ख़म-ए-अबरू-ए-सनम को देखें
हम ये काबे में दुआ करते हैं
अपने साक़ी को शब-ए-फ़ुर्क़त में
पानी पी पी के दुआ करते हैं
रोज़ दो-चार का ख़ून करता है
दस्त-ओ-पा सुर्ख़ रहा करते हैं
मर गए पर हदफ़-ए-तीर है ख़ाक
जा-ब-जा तोदे बना करते हैं
दहन-ए-ज़ख़्म से हम क़ातिल के
तेग़ को चूम लिया करते हैं
शोर-ए-महशर से डरें क्या आशिक़
ऐसे हंगामे हुआ करते हैं
होते हैं दिल में निहायत नादिम
ख़ून जो बे-जुर्म किया करते हैं
मेहंदी मलने के बहाने क़ातिल
कफ़-ए-अफ़सोस मला करते हैं
एवज़-ए-बादा ग़म-ए-साक़ी में
ख़ून-ए-दिल अपना पिया करते हैं
पाँव तक हाथ न पहुँचा उस की
हाथ हैहात मला करते हैं
जो हमें भूल गया है ज़ालिम
उस को हम याद किया करते हैं
ना-तवानी ने दिए पर हम को
जीवन-ए-पर-ए-काह उड़ा करते हैं
हम बने चाँद के हाले 'गोया' हैं
गिर्द उस मह के रहा करते हैं
ग़ज़ल
क़त्ल उश्शाक़ किया करते हैं
गोया फ़क़ीर मोहम्मद