EN اردو
क़त्ल पे तेरे मुझे कद चाहिए | शाही शायरी
qatl pe tere mujhe kad chahiye

ग़ज़ल

क़त्ल पे तेरे मुझे कद चाहिए

क़ाएम चाँदपुरी

;

क़त्ल पे तेरे मुझे कद चाहिए
ख़ूब है ये अपने का बद चाहिए

ज़ुल्फ़ के कूचों की दराज़ी न पूछ
चलने को वाँ उम्र-ए-अबद चाहिए

दिल की मैं करता नहीं झूटी सलाह
माल है सरकार का जद चाहिए

फ़ौज की है अश्क की हालत तबाह
आह से इस वक़्त मदद चाहिए

शैख़ की इज़्ज़त है मिन-अल-वाहियात
कफ़श न होवे तो लकद चाहिए

पश्म है याँ मस्नद-ए-क़ाक़ुम का फ़र्श
घर में फ़क़ीरों के नमद चाहिए

पसरव-ए-अहमद हो कि मरना है कल
राह न दीदा को बलद चाहिए

हम से ये क्या ना-ख़ुश ओ 'क़ाएम' से ख़ुश
जो हो मियाँ हिस्सा रसद चाहिए