EN اردو
क़स्में वा'दे रह जाते हैं | शाही शायरी
qasMein wade rah jate hain

ग़ज़ल

क़स्में वा'दे रह जाते हैं

वजीह सानी

;

क़स्में वा'दे रह जाते हैं
इंसाँ आधे रह जाते हैं

ख़त से ख़ुशबू उड़ जाती है
काग़ज़ सारे रह जाते हैं

रब की मर्ज़ी ही चलती है
और इरादे रह जाते हैं

लब पर उँगली रख लेती हो
हम चुप साधे रह जाते हैं

उस के रोब-ए-हुस्न के आगे
मारे बाँधे रह जाते हैं