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क़सीदा फ़त्ह का दुश्मन की तलवारों पे लिक्खा है | शाही शायरी
qasida fath ka dushman ki talwaron pe likkha hai

ग़ज़ल

क़सीदा फ़त्ह का दुश्मन की तलवारों पे लिक्खा है

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

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क़सीदा फ़त्ह का दुश्मन की तलवारों पे लिक्खा है
जो हम ने नारा-ए-तकबीर यल्ग़ारों पे लिक्खा है

शनासाई भी तेरे शहर में जब अजनबी ठहरी
तो अपना नाम हम ने घर की दीवारों पे लिक्खा है

शब-ए-ग़म आसमाँ को ताकता रहता हूँ पहरों यूँ
कि जैसे गर्दिश-ए-क़िस्मत का हल तारों पे लिक्खा है

अमल से दोस्तो दुनिया है जन्नत भी जहन्नम भी
निसाब-ए-ज़िंदगी इंसाँ के किरदारों पे लिक्खा है

उसे पूजे है 'मुज़्तर' उगता सूरज जान कर दुनिया
कि जिस ने नाम अपना वक़्त के धारों पे लिक्खा है