क़मर की वो ख़ुर्शीद तस्वीर है
गले में सितारों की ज़ंजीर है
कहाँ पा-ए-जानाँ कहाँ मेरा सर
ये तालेअ् ये क़िस्मत ये तक़दीर है
ख़फ़ा आप से आप होते हो क्यूँ
बता दो जो कुछ मेरी तक़्सीर है
न खोलो ख़त उस का धड़कता है दिल
ख़ुदा जाने क्या इस में तहरीर है
नुमायाँ है क़ौस-ए-क़ुज़ह अब्र में
मिसी पर लिखौटे की तहरीर है
मुनासिब है कुछ खा के मर जाओ 'बर्क़'
यही दर्द-ए-फ़ुर्क़त की तदबीर है
ग़ज़ल
क़मर की वो ख़ुर्शीद तस्वीर है
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़