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क़ल्ब का एहतिजाज होता है | शाही शायरी
qalb ka ehtijaj hota hai

ग़ज़ल

क़ल्ब का एहतिजाज होता है

शमशाद शाद

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क़ल्ब का एहतिजाज होता है
और क्या इख़्तिलाज होता है

सब नतीजा है अपनी करनी का
ये जो दुनिया में आज होता है

ये भी रंगत बदलती है अपनी
लाश का भी मिज़ाज होता है

महव होते हैं इश्क़ में जो लोग
उन से कब काम-काज होता है

बच के चलता है हर कोई उस से
शख़्स जो बद-मिज़ाज होता है

मस्लक-ए-इश्क़ में तो कसरत से
ज़ुल्म सहना रिवाज होता है

इश्क़ क्या है तुम्हें ये बतला दूँ
रोग ये ला-इलाज होता है

मेरे महबूब पैरहन में तिरे
रंगों का इम्तिज़ाज होता है

कोई शो'बा हो आज-कल तो 'शाद'
नज़्र-ओ-रिश्वत का राज होता है