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क़ल्ब-ए-हस्ती-ए-फ़िगार देख लिया | शाही शायरी
qalb-e-hasti-e-figar dekh liya

ग़ज़ल

क़ल्ब-ए-हस्ती-ए-फ़िगार देख लिया

अज़ीज़ बदायूनी

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क़ल्ब-ए-हस्ती-ए-फ़िगार देख लिया
आरज़ू का मज़ार देख लिया

होश गुम हो गए ज़माने के
ज़िंदगी का ख़ुमार देख लिया

लब-कुशा यूँ हुआ कोई ग़ुंचा
जैसे इक आबशार देख लिया

फिर कोई बार बार क्यूँ देखे
जब तुझे एक बार देख लिया

दामन-ए-सब्र तार तार हुआ
आप का इंतिज़ार देख लिया

ज़िंदगी भी हमें 'अज़ीज़' नहीं
आरज़ू का मज़ार देख लिया