क़ैस-ए-सहरा-नशीं से ले आओ
इश्क़ मुझ सा कहीं से ले आओ
चाँद कहता था आसमानों पर
नूर मेरा ज़मीं से ले आओ
उन के नाज़ुक लबों को छू जाए
ऐसा झोंका कहीं से ले आओ
रक़्स करता रहे जो होंटों पर
ऐसा मिस्रा कहीं से ले आओ
हम मनाएँ तो मान जाएँगे
उन को जा कर कहीं से ले आओ
ख़ाक जिन की हयात का सामाँ
एक चुटकी उन्हीं से ले आओ
है तमन्ना 'ओवैस' के सर की
एक पत्थर वहीं से ले आओ

ग़ज़ल
क़ैस-ए-सहरा-नशीं से ले आओ
ओवैस उल हसन खान