क़हक़हों की ज़द से ये गौहर छुपा
अपनी दौलत सब से चश्म-ए-तर छुपा
आग बरसेगी अभी कुछ देर में
छोड़ मेरी फ़िक्र अपना सर छुपा
वुसअ'त-ए-आलम में गुंजाइश नहीं
मुझ को अपनी ज़ात के अंदर छुपा
काम आएगा बुरे औक़ात में
ख़ाना-ए-दिल में ज़रा सा शर छुपा
उस ख़मोशी को समझ लूँ एहतिराम
या तिरे दिल में है मेरा डर छुपा
अपनी शख़्सिय्यत की 'जामिद' लाज रख
जो पस-ए-पर्दा है वो मंज़र छुपा

ग़ज़ल
क़हक़हों की ज़द से ये गौहर छुपा
अक़ील जामिद