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क़हक़हों की ज़द से ये गौहर छुपा | शाही शायरी
qahqahon ki zad se ye gauhar chhupa

ग़ज़ल

क़हक़हों की ज़द से ये गौहर छुपा

अक़ील जामिद

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क़हक़हों की ज़द से ये गौहर छुपा
अपनी दौलत सब से चश्म-ए-तर छुपा

आग बरसेगी अभी कुछ देर में
छोड़ मेरी फ़िक्र अपना सर छुपा

वुसअ'त-ए-आलम में गुंजाइश नहीं
मुझ को अपनी ज़ात के अंदर छुपा

काम आएगा बुरे औक़ात में
ख़ाना-ए-दिल में ज़रा सा शर छुपा

उस ख़मोशी को समझ लूँ एहतिराम
या तिरे दिल में है मेरा डर छुपा

अपनी शख़्सिय्यत की 'जामिद' लाज रख
जो पस-ए-पर्दा है वो मंज़र छुपा