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क़हक़हे की मौत है या मौत की आवाज़ है | शाही शायरी
qahqahe ki maut hai ya maut ki aawaz hai

ग़ज़ल

क़हक़हे की मौत है या मौत की आवाज़ है

मुश्ताक़ अंजुम

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क़हक़हे की मौत है या मौत की आवाज़ है
सिसकियाँ लेता हुआ अब ज़िंदगी का साज़ है

एक साया लड़खड़ाता आ रहा है इस तरफ़
देखिए तो इक हक़ीक़त सोचिए तू राज़ है

रेत में मुँह डाल कर साँसों का उस का रोकना
चंद सिक्कों के लिए बच्चा बड़ा जाँबाज़ है

सोच की मंज़िल कहीं है और आँखें हैं कहीं
जानता हूँ किस में कितनी क़ुव्वत-ए-पर्वाज़ है

दे रहा वो दिलासे क्यूँ जफ़ा करने के बा'द
चाहता है मुझ से क्या कैसा मिरा हमराज़ है

किस तरह होगा बयाँ हाल-ए-दिल-ए-बीमार अब
आसमाँ बरहम है और ख़ामोश चारासाज़ है

दौर आया है अजब 'अंजुम' यहाँ हुश्यार-बाश
ज़ाग़ है मख़दूम और ख़ादिम यहाँ शहबाज़ है