क़द्र-ए-वफ़ा भी होगी किसी दिन जफ़ा के बा'द
लाएगा रंग-ए-ख़ून-ए-शहीदाँ हिना के बा'द
होता है इंक़लाब जहाँ हर अदा के बा'द
बेबाक भी बनोगे कभी तुम हया के बा'द
लाए हैं फूल अहल-ए-मोहब्बत की क़ब्र पर
क्या याद आ गया उन्हें तर्क-ए-जफ़ा के बा'द
का'बे में मुझ से शान-ए-बुताँ पूछते हो शैख़
तौबा में उन का ज़िक्र करूँगा ख़ुदा के बा'द
उन की कमर का कोई पता ही नहीं कहीं
ये दूसरा तिलिस्म-ए-नज़र है हुमा के बा'द
बैठी है ले के अब मुझे आग़ोश में ज़मीं
आराम से हूँ कुंज-ए-लहद में क़ज़ा के बा'द
अहल-ए-वफ़ा मिलेगा न मुझ सा जहान में
पछताएँगे वो 'औज' ख़ुद आख़िर जफ़ा के बा'द
ग़ज़ल
क़द्र-ए-वफ़ा भी होगी किसी दिन जफ़ा के बा'द
राज्य बहादुर सकसेना औज