क़दम क़दम पे वफ़ा का दयार राह में है
ख़ुशा कि नक़्श-ए-कफ़-ए-पा-ए-यार राह में है
हर एक मौज में साज़-ए-फ़रेब है जिस की
वो इक सराब ब-हर-ए'तिबार राह में है
ये उड़ रही है जो ख़ूँ-रंग ख़ाक हर जानिब
किसी शहीद-ए-जुनूँ का मज़ार राह में है
न कोई बात न मक़्सद न आरज़ू न सवाल
बस एक ग़लग़ला-ए-गीर-ओ-दार राह में है
सुकून-ए-शब हमा नग़्मा फ़ज़ा-ए-शब हमा नूर
मगर अभी कोई शब-ज़िंदा-दार राह में है
पहुँच चुके हैं इधर हम-सफ़र सर-ए-मंज़िल
उधर अभी ख़लिश-ए-इंतिज़ार राह में है
क़दम क़दम पे गरेबाँ क़दम क़दम पे लहू
यही तो एक सुबूत-ए-बहार राह में है
तिरी तलब के तक़ाज़े तिरे हुसूल के ख़्वाब
तिरी तलाश बहर-ए'तिबार राह में है

ग़ज़ल
क़दम क़दम पे वफ़ा का दयार राह में है
सय्यद मज़हर गिलानी