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क़दम क़दम पे हमें रंग-ओ-बू का धोका है | शाही शायरी
qadam qadam pe hamein rang-o-bu ka dhoka hai

ग़ज़ल

क़दम क़दम पे हमें रंग-ओ-बू का धोका है

अमृत लाल इशरत

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क़दम क़दम पे हमें रंग-ओ-बू का धोका है
ख़िज़ाँ-नसीब रफ़ीक़ो ये दौर कैसा है

जो तू कहे उसे छू कर ज़रा यक़ीं कर लूँ
तिरी जबीं पे मुझे चाँदनी का धोका है

मिरी निगाह ने बख़्शी है हुस्न को रौनक़
नसीम-ए-सुब्ह से फूलों का रंग बिखरा है

बिना-ए-शे'र है मेरा मुशाहिदा 'इशरत'
मिरे कलाम में हर दिल का दर्द होता है