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क़दम क़दम पे अजब हादसात-ए-ग़म गुज़रे | शाही शायरी
qadam qadam pe ajab hadsat-e-gham guzre

ग़ज़ल

क़दम क़दम पे अजब हादसात-ए-ग़म गुज़रे

माहिर अल-हमीदी

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क़दम क़दम पे अजब हादसात-ए-ग़म गुज़रे
जहाँ जहाँ से तिरी जुस्तुजू में हम गुज़रे

ग़म-ए-हयात को ले कर जिधर से हम गुज़रे
हुजूम-ए-हादिसा-ए-नौ-ब-नौ बहम गुज़रे

न रास आए मिरी ज़िंदगी मुझे ऐ दोस्त
कभी गराँ जो मिरे दिल पे तेरा ग़म गुज़रे

क़दम क़दम पे हुआ इम्तिहान-ए-होश-ओ-ख़िरद
ख़ुदा का शुक्र कि दामन बचा के हम गुज़रे

नज़र में रक़्स-कुनाँ है तसव्वुर-ए-रुख़-ए-दोस्त
ये कह दो बाद-ए-सबा से दबे क़दम गुज़रे

जबीं झुके तो सिमट आए आस्तान-ए-हबीब
वो सज्दा क्या जो ब-क़ैद-ए-दर-ए-हरम गुज़रे

मिली जहाँ से मता-ए-ख़ुशी ज़माने को
हम उस मक़ाम से 'माहिर' ब-चश्म-ए-नम गुज़रे