क़दम क़दम निशान ढूँढता रहा
मैं इक नया जहान ढूँढता रहा
बहुत से क़ाफ़िले मिले थे राह में
मैं अपना कारवान ढूँढता रहा
निकल गया जो मैं हुदूद-ए-वक़्त से
तो मुझ को आसमान ढूँढता रहा
इधर मैं दर-ब-दर मकान के लिए
उधर मुझे मकान ढूँढता रहा
अजीब शख़्स हूँ ख़ुशी का एक पल
ग़मों के दरमियान ढूँढता रहा
मुझे बयान कर रहा था कोई शख़्स
मैं अपनी दास्तान ढूँढता रहा
ग़ज़ल
क़दम क़दम निशान ढूँढता रहा
अज़हर अब्बास