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क़ासिद को दे न ऐ दिल उस गुल-बदन की पाती | शाही शायरी
qasid ko de na ai dil us gul-badan ki pati

ग़ज़ल

क़ासिद को दे न ऐ दिल उस गुल-बदन की पाती

क़ाएम चाँदपुरी

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क़ासिद को दे न ऐ दिल उस गुल-बदन की पाती
चल ख़ुद ही ले चलें हम अपने सजन की पाती

हर सत्र मौज-ए-शीरीं इक मुद्दआ रखे है
टुक देख जू-ए-पुर-ख़ूँ है कोहकन की पाती

काग़ज़ हरी ज़मीं का नहीं देखता कि शायद
पहुँचे न इस हुनर से उस को हमन की पाती

मुंफ़ज़ निगह का आँसू घेरे ही लें हैं प्यारे
बाँचूँ सो किस तरह से अब में तुमहन की पाती

आवारा दाग़-ए-दिल हैं नाले से यूँ कि जैसे
बाद-ए-ख़िज़ाँ से दिरहम होवे चमन की पाती

'क़ाएम' लिखा था उस ने आने का शब को वादा
सो दिन में देखी सौ दम उस सीम-तन की पाती