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क़ाबू में दिल हो तो कहें शैदा न कीजिए | शाही शायरी
qabu mein dil ho to kahen shaida na kijiye

ग़ज़ल

क़ाबू में दिल हो तो कहें शैदा न कीजिए

किशन कुमार वक़ार

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क़ाबू में दिल हो तो कहें शैदा न कीजिए
अपने को अपने हाथ से रुस्वा न कीजिए

दिल ले के बोसा देते नहीं और ये कहते हैं
अपने पराए में कहीं चर्चा न कीजिए

रिंदान बादा-ख़्वार में है ऐब-ए-सर-कशी
ख़म किस तरह से गर्दन-ए-मीना न कीजिए

ईसा से उन की चश्म-ए-सुख़न गो ये कहती है
मेरे मरीज़-ए-इश्क़ को अच्छा न कीजिए

मुँह फेरिए न लाल-ए-शकर खा के बोसे से
दिल अपने तल्ख़-काम का खट्टा न कीजिए

ख़ूँ-रेज़ियाँ टपकती हैं पा-ए-हिनाई से
फ़ित्ना ख़िराम-ए-नाज़ का बरपा न कीजिए

आग़ाज़ इश्क़ को दिया अंजाम-ए-गिर्या ने
अब क्या 'वक़ार' कीजिए और क्या न कीजिए