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प्यास बढ़ती हुई ता-हद्द-ए-नज़र पानी था | शाही शायरी
pyas baDhti hui ta-hadd-e-nazar pani tha

ग़ज़ल

प्यास बढ़ती हुई ता-हद्द-ए-नज़र पानी था

ऐन ताबिश

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प्यास बढ़ती हुई ता-हद्द-ए-नज़र पानी था
रू-ब-रू कैसा अजब मंज़र-ए-हैरानी था

रास्ता बंद था और शौक़-ए-सफ़र था बाक़ी
एक अफ़्साना जुनूँ का था जो तूलानी था

एक ख़ुश्बू थी जो मल्बूस पे ताबिंदा थी
एक मौसम था मिरे सर पे जो तूफ़ानी था

दम-ब-ख़ुद एक तमाशा-ए-फ़ना था हर-सू
शोर करता हुआ इक शौक़-ए-जहाँबानी था

ख़ुद-पसंदी का अजब वहम था सब पर तारी
जैसे कोई भी किसी का न यहाँ सानी था