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प्यार ईसार वफ़ा शेर-ओ-हुनर की बातें | शाही शायरी
pyar isar wafa sher-o-hunar ki baaten

ग़ज़ल

प्यार ईसार वफ़ा शेर-ओ-हुनर की बातें

हमीदा शाहीन

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प्यार ईसार वफ़ा शेर-ओ-हुनर की बातें
अब तो लगती हैं किसी और नगर की बातें

कोई सूरत न रिहाई की बनी तो जाना
हम तो दीवार से करते रहे दर की बातें

वक़्त आया तो ज़बानों को भी जुम्बिश न हुई
लोग करते थे बहुत तेग़ की सर की बातें

ये हैं मग़रूर परिंदे उन्हें डरने दो अभी
बैठ जाएँगे अगर छेड़ दें घर की बातें

ख़ाक से जोड़ लिया है वो तअ'ल्लुक़ कि हमें
रास आती नहीं शम्स-ओ-क़मर की बातें

पाँव रेशम के गदीलों से उतरते ही नहीं
और हर-वक़्त हैं काँटों पे सफ़र की बातें

आसमाँ देख के 'शाहीन' ये दिल चाहता है
कोई करता रहे पर्वाज़ की पर की बातें