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पूरी तरह से अब के तय्यार हो के निकले | शाही शायरी
puri tarah se ab ke tayyar ho ke nikle

ग़ज़ल

पूरी तरह से अब के तय्यार हो के निकले

फ़रहत एहसास

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पूरी तरह से अब के तय्यार हो के निकले
हम चारागर से मिलने बीमार हो के निकले

जादू-भरी जगह है बाज़ार तुम न जाना
इक बार हम गए थे बाज़ार हो के निकले

मिट्टी के रास्तों पे उतरे इमारतों से
वापस इमारतों के आसार हो के निकले

अपनी हक़ीक़तों को जंगल बनाया हम ने
और फिर कहानियों के किरदार हो के निकले

आख़िर को ज़िंदगी के क़दमों में बिछ गए हम
और उस की ठोकरों से हमवार हो के निकले

मा'शूक़ ने करा दी क्या सुल्ह आशिक़ों में
सारे रक़ीब आए और यार हो के निकले

ये शख़्स फ़रहत-'एहसास' ऐसी बुरी बला है
हम उस के साथ रह कर बे-कार हो के निकले