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पूछें तिरे ज़ुल्म का सबब हम | शाही शायरी
puchhen tere zulm ka sabab hum

ग़ज़ल

पूछें तिरे ज़ुल्म का सबब हम

सबा अकबराबादी

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पूछें तिरे ज़ुल्म का सबब हम
इतने तो नहीं हैं बे-अदब हम

इल्ज़ाम नहीं है फ़स्ल-ए-गुल पर
ख़ुद अपने जुनूँ का हैं सबब हम

साहिल पे सिवाए ख़ाक क्या था
ग़र्क़ाब हुए हैं तिश्ना-लब हम

करते हैं तलाश-ए-आदमिय्यत
दुनिया में हैं आदमी अजब हम

फ़ुर्सत हो तो आ के देख जाओ
मुद्दत से पड़े हैं जाँ-ब-लब हम

बाहर से हैं मोमिन-ए-सरापा
इन्दर से तमाम बू-लहब हम

हर शाख़ पे गुल खिले हुए थे
गुलशन से 'सबा' चले थे जब हम