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पुरानी मिट्टी से पैकर नया बनाऊँ कोई | शाही शायरी
purani miTTi se paikar naya banaun koi

ग़ज़ल

पुरानी मिट्टी से पैकर नया बनाऊँ कोई

नज़ीर क़ैसर

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पुरानी मिट्टी से पैकर नया बनाऊँ कोई
दिन आ गए हैं कि अब मोजज़ा दिखाऊँ कोई

पुकारते हैं उफ़ुक़ ख़ाक बे-सिफ़ात हुई
ज़मीन से शजर-ए-आफ़्ताब उगाऊँ कोई

असा बुलंद करूँ सर-कशीदा लहरों पर
फ़सील-ए-आब उठाऊँ हवा चलाऊँ कोई

सियाहियों में छुपे हैं दिलों के आईने
कहीं से परतव-ए-गुम-गश्ता ढूँड लाऊँ कोई

तराश लूँ कोई जुमला लब-ए-ख़मोशी से
चराग़-ए-हर्फ़ सर-ए-ताक़-ए-शब जलाऊँ कोई

ग़ुबार-ए-रंग में भटकी हुई हैं ख़ुशबूएँ
हवा का हाथ बनूँ रास्ता दिखाऊँ कोई

ज़मीं से लौह-ए-फ़लक तक हुजूम-ए-चश्म-ओ-सदा
बिखर चुका हूँ बहुत दायरा लगाऊँ कोई