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पुराने घर में नया घर बसाना चाहता है | शाही शायरी
purane ghar mein naya ghar basana chahta hai

ग़ज़ल

पुराने घर में नया घर बसाना चाहता है

मुस्तफ़ा शहाब

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पुराने घर में नया घर बसाना चाहता है
वो सूखे फूल में ख़ुशबू जगाना चाहता है

न जाने क्यूँ तिरे मासूम झूट को आख़िर
ज़माना सच की तरह आज़माना चाहता है

अभी तपास से निकला नहीं तिरा साधू
कि फिर से इक नई धूनी रमाना चाहता है

ये आब-दीदा ठहर जाए झील की सूरत
कि एक चाँद का टुकड़ा नहाना चाहता है

ख़ुद अपनी आँख में पानी उतारने वाला
हमारी आँख को सहरा बनाना चाहता है

तुझे तो बाँध के रक्खा है नीस्ती ने 'शहाब'
तू है कि हद्द-ए-फ़ुसूँ को मिटाना चाहता है