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पुराने अक्स कर के रद हमारे | शाही शायरी
purane aks kar ke rad hamare

ग़ज़ल

पुराने अक्स कर के रद हमारे

नज़र जावेद

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पुराने अक्स कर के रद हमारे
बदल देता है ख़ाल-ओ-ख़द हमारे

तबीअत के बहुत आज़ाद थे हम
रही ठोकर में हर मसनद हमारे

खुली बाँहों से मिलते थे हमेशा
मगर थी दरमियाँ इक हद हमारे

ज़रा सी धूप चमकेगी सरों पर
पिघल जाएँगे मू-ए-क़द हमारे