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पुर-कैफ़ कहीं के भी नज़ारे न रहेंगे | शाही शायरी
pur-kaif kahin ke bhi nazare na rahenge

ग़ज़ल

पुर-कैफ़ कहीं के भी नज़ारे न रहेंगे

ओबैदुर् रहमान

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पुर-कैफ़ कहीं के भी नज़ारे न रहेंगे
दुनिया में अगर इश्क़ के मारे न रहेंगे

दुनिया-ए-मोहब्बत में चराग़ाँ न मिलेगा
पलकों पे अगर अश्क हमारे न रहेंगे

तुम छोड़ के मत जाओ मुझे शहर-ए-बला में
वर्ना मिरे जीने के सहारे न रहेंगे

तय कर लो सफ़र शब का कि मौक़ा है ग़नीमत
फिर चर्ख़-ए-बरीं पे ये सितारे न रहेंगे

ग़म ज़ीस्त के अफ़्साने का उनवान हसीं है
हम होंगे कहाँ ग़म जो हमारे न रहेंगे

बे-म'अनी नज़र आएँगे आँखों के सहीफ़े
मौजूद अगर उन में इशारे न रहेंगे

फिर किस पे यक़ीं कैसा भरम कैसी मुरव्वत
आज़ा भी हमारे जो हमारे न रहेंगे