पुर-कैफ़ बहारों ने भी दिल तोड़ दिया है
हाँ उन के नज़ारों ने भी दिल तोड़ दिया है
तूफ़ान का शेवा तो है कश्ती को डुबोना
ख़ामोश किनारों ने भी दिल तोड़ दिया है
इस डूबते सूरज से तो उम्मीद ही क्या थी
हँस हँस के सितारों ने भी दिल तोड़ दिया है
किस तरह करें तुझ से गिला तेरे सितम का
मदहोश इशारों ने भी दिल तोड़ दिया है
माना कि थी ग़मगीन कली ख़ौफ़-ए-ख़िज़ाँ से
चुप रह के बहारों ने भी दिल तोड़ दिया है
अग़्यार का शिकवा नहीं इस अहद-ए-हवस में
इक उम्र के यारों ने भी दिल तोड़ दिया है
ये दौर-ए-मोहब्बत भी अजब दौर है इस में
ऐ 'नक़्श' सहारों ने भी दिल तोड़ दिया है
ग़ज़ल
पुर-कैफ़ बहारों ने भी दिल तोड़ दिया है
महेश चंद्र नक़्श