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पिया का इशक है मिरा यार-ए-जानी | शाही शायरी
piya ka ishaq hai mera yar-e-jaani

ग़ज़ल

पिया का इशक है मिरा यार-ए-जानी

क़ुली क़ुतुब शाह

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पिया का इशक है मिरा यार-ए-जानी
बिन उस नेह कूँ जीव कर मैं न जानी

मोहब्बत है मुंज जीव चमन का सो मेरा
पिरित फूल रंग रंग के उस की निशानी

हुए आशिक़ाँ रूप लैला न मजनूँ
वले हुई हमारे वक़त ऊ कहानी

इशक पंथ में जिन न बेताब होवे
उसे आशिक़ाँ कीं नहीं ओ सियानी

मोहब्बत की सुल्तानी है सब जगत में
कि उस सम नहीं कोई ज्ञानी-ओ-दानी

समज से न हर कोई माने पिरित के
नहीं फ़हम हर कस कूँ मैं ऐ पचानी

नबी सदक़े 'क़ुतबा' कूँ बिन साईं मुख बिन
नहीं देस्ता होर मुख यूँ नूरानी