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पीरी नहीं चलती कि फ़क़ीरी नहीं चलती | शाही शायरी
piri nahin chalti ki faqiri nahin chalti

ग़ज़ल

पीरी नहीं चलती कि फ़क़ीरी नहीं चलती

अज़लान शाह

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पीरी नहीं चलती कि फ़क़ीरी नहीं चलती
इस इश्क़ में हर एक की मर्ज़ी नहीं चलती

पड़ती है बना कर हमें रखनी इसी ख़ातिर
दुनिया के बिना अपनी फ़क़ीरी नहीं चलती

हाथों से गँवाते हुए तुझ को यही सोचूँ
तक़दीर के आगे तो किसी की नहीं चलती

किस वास्ते रख लेगी भरम मेरा ये दुनिया
मैं जानता हूँ मेरी कहीं भी नहीं चलती

दुनिया से बस इतनी सी शिकायत रही हम को
ये साथ हमारे कभी सीधी नहीं चलती