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पी ले जो लहू दिल का वो इश्क़ की मस्ती है | शाही शायरी
pi le jo lahu dil ka wo ishq ki masti hai

ग़ज़ल

पी ले जो लहू दिल का वो इश्क़ की मस्ती है

शमीम करहानी

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पी ले जो लहू दिल का वो इश्क़ की मस्ती है
क्या मस्त है ये नागन अपने ही को डसती है

मय-ख़ाने के साए में रहने दे मुझे साक़ी
मय-ख़ाने के बाहर तो इक आग बरसती है

ऐ ज़ुल्फ़-ए-ग़म-ए-जानाँ तू छाँव घनी कर दे
रह रह के जगाता है शायद ग़म-ए-हस्ती है

ढलते हैं यहाँ शीशे चलते हैं यहाँ पत्थर
दीवानो ठहर जाओ सहरा नहीं बस्ती है

जिन फूलों के झुरमुट में रहते थे 'शमीम' इक दिन
उन फूलों की ख़ुशबू को अब रूह तरसती है