पी कर भी तबीअत में तल्ख़ी है गिरानी है
इस दौर के शीशों में सहबा है कि पानी है
ऐ हुस्न तुझे इतना क्यूँ नाज़-ए-जवानी है
ये गुल-बदनी तेरी इक रात की रानी है
इस शहर के क़ातिल को देखा तो नहीं लेकिन
मक़्तल से झलकता है क़ातिल की जवानी है
जलता था जो घर मेरा कुछ लोग ये कहते थे
क्या आग सुनहरी है क्या आँच सुहानी है
इस फ़न की लताफ़त को ले जाऊँ कहाँ आख़िर
पत्थर का ज़माना है शीशे की जवानी है
क्या तुम से कहें क्या है आहंग 'शमीम' अपना
शोलों की कहानी है शबनम की ज़बानी है

ग़ज़ल
पी कर भी तबीअत में तल्ख़ी है गिरानी है
शमीम करहानी