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फूँक दे है मुँह तिरा हर साफ़-दिल के तन में आग | शाही शायरी
phunk de hai munh tera har saf-dil ke tan mein aag

ग़ज़ल

फूँक दे है मुँह तिरा हर साफ़-दिल के तन में आग

वली उज़लत

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फूँक दे है मुँह तिरा हर साफ़-दिल के तन में आग
सामने ख़ुर्शीद के लगती है जो दर्पन में आग

तुझ से ऐ बुलबुल ज़ियादा गुल में है तासीर-ए-इश्क़
दिल में ख़ूँ लब पर हँसी है उस के पैराहन में आग

अहल-ए-ज़र साज़-ए-रऊनत से होवेंगे दोज़ख़ी
डालते हैं शम्अ की अव्वल रग-ए-गर्दन में आग

कोहकन लाला से ख़ूँ तेरा है जोशाँ ब'अद साल
बे-सुतूँ के देख दाएम है भरी दामन में आग

सोज़-ए-हिज्र-ए-कान्हा से जो साँवला था 'उज़लत' आह
दाग़दार आख़िर लगी टेसू के बिंद्राबन में आग