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फूलों से छुप सका है कहीं गुलिस्ताँ का हाल | शाही शायरी
phulon se chhup saka hai kahin gulistan ka haal

ग़ज़ल

फूलों से छुप सका है कहीं गुलिस्ताँ का हाल

रघुनाथ सहाय

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फूलों से छुप सका है कहीं गुलिस्ताँ का हाल
हम जानते हैं आज है जो इस जहाँ का हाल

नज़रों में दार-ओ-गीर का आलम है आज भी
किस दिल से हम बताएँ तुम्हें कारवाँ का हाल

बिजली की ज़द में आ गया फ़स्ल-ए-बहार में
अल-मुख़्तसर यही है मेरे आशियाँ का हाल

नक़्शा किसी की बज़्म का आँखों में फिर गया
वाइ'ज़ ने आज छेड़ा जो बाग़-ए-जिनाँ का हाल

है फ़िक्र गुल की इस को न कलियों का कुछ ख़याल
हम क्या बताएँ आज जो है बाग़बाँ का हाल

बे-बाल-ओ-पर पड़ा हूँ क़फ़स में चमन से दूर
कुछ तो बताओ मुझ को मिरे गुलिस्ताँ का हाल

मेरे ही गुलिस्ताँ की नहीं बात ऐ 'उमीद'
है एक ही सा आज तो सारे जहाँ का हाल