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फूलों की अंजुमन में बहुत देर तक रहा | शाही शायरी
phulon ki anjuman mein bahut der tak raha

ग़ज़ल

फूलों की अंजुमन में बहुत देर तक रहा

ज़ीशान साहिल

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फूलों की अंजुमन में बहुत देर तक रहा
कोई मिरे चमन में बहुत देर तक रहा

आया था मेरे पास वो कुछ देर के लिए
सूरज मगर गहन में बहुत देर तक रहा

मैं रोकता रहा उसे चालाकियों के साथ
वो अपने भोले-पन में बहुत देर तक रहा

जो शह मिली तो दिल मिरा बेबाक हो गया
नैरंगी-ए-बदन में बहुत देर तक रहा

आँखों में आ गया है मिरी भी ज़रा सा दाग़
फूल उस के पैरहन में बहुत देर तक रहा

आया नहीं है खींच के लाना पड़ा मुझे
दिल यार के वतन में बहुत देर तक रहा

उस के बग़ैर जैसे जहन्नम है ज़िंदगी
मैं जन्नत-ए-अद्न में बहुत देर तक रहा

दोनों से साथ साथ मुलाक़ात हो गई
कुछ सर्व कुछ समन में बहुत देर तक रहा