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फूल सब के लिए महकते हैं | शाही शायरी
phul sab ke liye mahakte hain

ग़ज़ल

फूल सब के लिए महकते हैं

सोनरूपा विशाल

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फूल सब के लिए महकते हैं
लोग लेकिन कहाँ समझते हैं

ज़िंदगी जी रहे हैं हम लेकिन
ज़िंदगी के लिए तरसते हैं

वक़्त का एक नाम और भी है
लोग मरहम भी इस को कहते हैं

रोज़ मिलते नहीं हैं हम ख़ुद से
रोज़ ख़ुद से मगर बिछड़ते हैं

फूल जैसे जो खिल नहीं पाते
फूल जैसे वही बिखरते हैं

वक़्त में ख़ासियत है क्या ऐसी
वक़्त के साथ सब बदलते हैं