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फूल ने मुरझाते मुरझाते कहा आहिस्ता से | शाही शायरी
phul ne murjhate murjhate kaha aahista se

ग़ज़ल

फूल ने मुरझाते मुरझाते कहा आहिस्ता से

मुस्तफ़ा शहाब

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फूल ने मुरझाते मुरझाते कहा आहिस्ता से
हो रही है मुझ से ख़ुशबू भी जुदा आहिस्ता से

क़ुर्बतें थीं फिर भी लगता है हमारे दरमियाँ
आ के हाएल हो गया इक फ़ासला आहिस्ता से

इक मुअम्मा है चमन से उस परिंदे का सफ़र
शाम को जो आशियाँ से उड़ गया आहिस्ता से

रख लिया ज़िद्दी अना ने फिर मिरे सर का वक़ार
ऊँचा नेज़े की अनी पर कर दिया आहिस्ता से

बहते बहते जब रवानी में कमी आई 'शहाब'
रेत पर सर रख के दरिया सो गया आहिस्ता से