फूल को ख़ार लिखें ख़ार को शबनम लिक्खें
ज़ख़्म गहरा हो तो आसूदा-ए-मरहम लिक्खें
नर्म अल्फ़ाज़ ही तहरीर के शाइंदा हैं
ये मुनासिब है कि काग़ज़ को भी रेशम लिक्खें
एक इक हर्फ़ से ख़ुशबू-ए-बहाराँ जागे
सादे काग़ज़ पे कभी फूल अगर हम लिक्खें
ग़म को रंगीन बना देंगे मोहब्बत के ख़ुतूत
आप कुछ हम को लिखें आप को कुछ हम लिक्खें
हुस्न-ए-इज्माल में तफ़्सीर के पहलू हैं बहुत
कुछ ज़ियादा भी अगर लिखना हो तो कम लिखें

ग़ज़ल
फूल को ख़ार लिखें ख़ार को शबनम लिक्खें
मतरब निज़ामी