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फूल की रंगत मैं ने देखी दर्द की रंगत देखे कौन | शाही शायरी
phul ki rangat maine dekhi dard ki rangat dekhe kaun

ग़ज़ल

फूल की रंगत मैं ने देखी दर्द की रंगत देखे कौन

अहमद ज़फ़र

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फूल की रंगत मैं ने देखी दर्द की रंगत देखे कौन
प्यार का गीत सुना है सब ने धुन थी कैसी सोचे कौन

धूप ने तन-मन फूँक दिया तो साए में आ बैठा था
शाख़ शाख़ में आग छुपी है पेड़ के नीचे बैठे कौन

अपने दर्द को गर्द समझ कर मंज़िल मंज़िल छोड़ दिया
आईने पर धूल जमी है आईने में देखे कौन

अंग अंग से रंग रंग के फूल बरसते देखे कौन
रंग रंग से शोले बरसे कैसे बरसे सोचे कौन

फ़न तरतीब का ज़ेवर ले कर गुलशन गुलशन उभरा है
बे-तरतीबी हुस्न है जिस का उस फ़नकार से उलझे कौन

मेरे कोट का मैला कॉलर और नुमायाँ होता है
पागल सज-धज रखने वाले तेरे सामने बैठे कौन