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फूल ख़ुशबू उन पे उड़ती तितलियों की ख़ैर हो | शाही शायरी
phul KHushbu un pe uDti titliyon ki KHair ho

ग़ज़ल

फूल ख़ुशबू उन पे उड़ती तितलियों की ख़ैर हो

अहमद सज्जाद बाबर

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फूल ख़ुशबू उन पे उड़ती तितलियों की ख़ैर हो
सब के आँगन में चहकती बेटियों की ख़ैर हो

जितने मीठे लहजे हैं सब गीत होंगे एक दिन
मीठे लहजों से महकती बोलियों की ख़ैर हो

चुनरियों में ख़्वाब ले कर चल पड़ी हैं बेटियाँ
इन पराए देस जाती डोलियों की ख़ैर हो

बारिशों के शोर में क्यूँ जागते हैं दर्द भी
सेहन-ए-जाँ में रक़्स करती बदलियों की ख़ैर हो

रख़्त-ए-दिल को थाम कर वो आ गई हैं रेत पर
ख़्वाहिशों की ख़ैर हो उन पगलियों की ख़ैर हो

अब कबूतर फ़ाख़ताएँ जा चुकी हैं गाँव से
ऐ ख़ुदावंद पेड़ की और बस्तियों की ख़ैर हो

रात है 'बाबर' खड़ी सैलाब का भी ज़ोर है
साहिलों की माँझियों की कश्तियों की ख़ैर हो