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फूल खिलते ही अगर पाँव में छाले होंगे | शाही शायरी
phul khilte hi agar panw mein chhaale honge

ग़ज़ल

फूल खिलते ही अगर पाँव में छाले होंगे

जुंबिश ख़ैराबादी

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फूल खिलते ही अगर पाँव में छाले होंगे
ऐ जुनूँ दश्त-नवर्दी के भी लाले होंगे

उन पे हो जाएँगे ता'मीर हक़ीक़त के महल
हम ने जो ख़्वाब कभी ज़ेहन में पाले होंगे

बंदगी मेरी तिरे दर की जबीं-साई है
मेरे सज्दे तिरे क़दमों के हवाले होंगे

मुस्कुराता है हर इक ज़ख़्म दिल-ए-बिस्मिल का
हँस के क़ातिल ने भी अरमान निकाले होंगे

ऐ बहारान-ए-चमन वक़्त का एहसास रहे
खिल गए फूल तो काँटों के हवाले होंगे

इंक़लाब आ ही गया सेहन-ए-चमन में 'जुम्बिश'
अब बहारों के भी अंदाज़ निराले होंगे